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रिश्ते खून से नहीं, भरोसे से बनते हैं: राजकुमार मालवीय, रक्षाबंधन महोत्सव उसका सबसे बड़ा प्रमाण बना, रचा भावनात्मक इतिहास

जावर/आष्टा।


त्योहार आते हैं, जाते हैं… पर कुछ लम्हे इतिहास में दर्ज हो जाते हैं। 15 अगस्त का दिन, जावर और आष्टा की धरती पर कुछ ऐसा ही बन गया, जब हज़ारों बहनों ने भाजपा झुग्गी-झोपड़ी प्रकोष्ठ के प्रदेश कार्यालय प्रभारी डॉ. राजकुमार मालवीय को भाई मानकर उनकी कलाई पर राखी बांधी, और इस पर्व को रिश्तों की गहराई और भावनाओं की ऊंचाई दे दी।

न आमंत्रण था, न आयोजन, फिर भी आ गया पूरा जनसमुद्र

कोई बैनर नहीं, कोई मंच नहीं… बस बहनों का प्यार था और एक भाई का वादा। जैसे ही खबर फैली कि डॉ. मालवीय राखी बंधवाने आ रहे हैं, दूर-दराज गांवों से बहनें, माताएं और बेटियां उमड़ पड़ीं। कुछ पैदल, कुछ साइकिल पर, कुछ ओमनी में, कुछ ट्रैक्टर-ट्रॉली में… लेकिन सबके दिल में सिर्फ एक ही भाव था — “राजकुमार भैया हमारी राखी जरूर बंधवाएंगे।”

यह सिर्फ राखी नहीं, यह मेरा धर्म है — डॉ. मालवीय

एक-एक बहन जब राखी बांध रही थी, तो वह सिर झुकाकर मुस्कुरा रहे थे। लेकिन आंखें नम थीं। उन्होंने कहा,
“यह धागा नहीं, मेरे जीवन की सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी है। जब किसी की आंखें मुझे भाई मानकर देखती हैं, तो उस रिश्ते को निभाना मेरा धर्म बन जाता है।”

बारिश ने भी दिया आशीर्वाद, जैसे इंद्रदेव भी भावुक हो उठे

जैसे ही राखी का सिलसिला शुरू हुआ, आसमान से बूंदें बरसने लगीं। न किसी ने छतरी उठाई, न कोई भागा — सबने महसूस किया कि यह वर्षा नहीं, ईश्वर की पुष्पवर्षा है। इस सजीव दृश्य के बीच डॉ. मालवीय ने एक नहीं चार-चार स्वरचित भावपूर्ण गीत गुनगुनाये — जिसे सुनकर बहनों की आंखों में आंसू थे और चेहरे पर सुकून।

खून का रिश्ता जरूरी नहीं, भावनाओं से भी परिवार बनते हैं

डॉ. मालवीय ने अपने उद्बोधन में कहा, “जब रक्षाबंधन सिर्फ एक रस्म न होकर, बहनों की सुरक्षा का संकल्प बन जाए… तब हर राखी एक संकल्पपत्र बन जाती है। मेरा रिश्ता इन बहनों से खून का नहीं है, लेकिन भावना का है — और वही सबसे पवित्र होता है।”

साड़ियां, मिठाई और वो अनमोल वादा

डॉ. मालवीय ने बहनों को उनकी पसंद की साड़ियां और मिठाइयों के साथ प्रेम दिया। लेकिन जो सबसे बड़ा उपहार उन्होंने दिया, वह था उनका यह वादा, “आपका ये भाई बिना शोर के, बिना शर्त के, हर परिस्थिति में आपके साथ खड़ा रहेगा।”

एक नेता नहीं, एक भाई मिला, लाखों बहनों को

यह आयोजन एक राजनेता का नहीं था। यह एक भाई की भावनाओं, उसकी संवेदनाओं और उसकी ईमानदारी का प्रमाण था। डॉ. मालवीय ने न केवल राखी बंधवाई, बल्कि बहनों की समस्याएं सुनीं, सुझाव लिए, और समाधान का भरोसा भी दिया।

समापन नहीं, शुरुआत थी यह, सेवा की एक नई परिभाषा

कार्यक्रम के अंत में उन्होंने कहा, “जब तक सांसें हैं, तब तक भारत है। और जब तक भारत है, तब तक आपकी सेवा, सुरक्षा और सम्मान मेरा सबसे बड़ा धर्म रहेगा। इस रक्षाबंधन पर सिर्फ धागे नहीं बंधे… एक ऐसा रिश्ता बना जो न राजनीति जानता है, न प्रचार। यह दिल से दिल तक का बंधन था — जो न मिटेगा, न टूटेगा… बस और मजबूत होता जाएगा।

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